Diya Jethwani

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लेखनी कहानी -06-Sep-2022... रिश्तों की बदलतीं तस्वीर..(20)


ना चाहते हुवे भी मन मारकर सलोनी ने फोन उठाया :- हैलो...। 

व्हाट हैलो यार... ना मैसेज ना फोन... सब ठीक तो हैं ना...! 

हाँ सब ठीक हैं.... बस थोड़ा थक गई थीं तो इसलिए...। 

क्या यार.... मैं कितना परेशान हो गया था पता हैं तुम्हें.। मुझसे कह देतीं यार थकावट मैं उतार देता....। 


रवि.... प्लीज़.... मैं बाद में बात करुं...। अभी बहुत थकावट हो रहीं हैं..। 

जी नहीं... अभी मुझसे थोड़ी देर बात कर लो यार.... मेरा मन नहीं लग रहा हैं....। जबसे वापस आया हूँ... अजीब सी फिलिंग्स हो रहीं हैं...। प्लीज यार थोड़ी देर.... प्लीज...प्लीज..। 

ओके बाबा.... इतना प्लीज प्लीज बोलने की जरूरत नहीं हैं...। 

सलोनी... फोन पर बात करते हुवे अपने कमरे की तरफ़ चल दी.. ।विनी भी उसके पीछे पीछे चल दी....। कमरे में बात करने में वो इतनी मशगूल हो गई की उसने अपने हाथ में लिया वो खत खिड़की पर ही रख दिया...। विनी भी उसके पीछे पीछे ही थीं....। विनी ने ना जाने क्या सोचकर वो खत वहाँ से उठा लिया और बंद पड़ी खिड़की को सलोनी की नजरों से छिपते हुवे थोड़ा सा खोल दिया...।फिर वो खत लेकर वाशरूम में चलीं गई....। वहाँ उसने उस खत के टुकड़े टुकड़े करके पानी में बहा दिए...। बाहर आकर उसने अपना सामान लिया और सलोनी को इशारे से बाय कहते हुवे वहाँ से चल दी...। 

बाहर आकर उसने सुनील से बात की और कहा :- डोंट वैरी अंकल अब वो आप पर इल्जाम लगाने या कुछ बोलने से पहले खुद ही गिल्ट महसूस करेंगी...। 

क्या मतलब..!! 

उसने दादी की आखिरी निशानी... उनका वो खत.. गुमा दिया...। 

व्हाट.... लेकिन सलोनी अभी तो अंदर लेकर गई थीं....। 

हाँ.... लेकर गई थीं पर अब वो उसके पास नहीं रहा..। 

लेकिन बेटा... ऐसा क्यूँ किया तुमने.... वो खत पढ़ लेती तो राहत महसूस करतीं..। 

अंकल... मैं जानती हूँ वो खत दादी ने तो नहीं लिखा था...और सलोनी उसे पढ़कर फिलहाल थोड़ा रिलेक्स भी हो जाती..। लेकिन यह बात भी तय थीं की वो दादी की इस आखिरी निशानी को हमेशा अपने पास संभाल कर रखतीं...। भगवान ना करे... अगर कभी उसका दिमाग घुम जाए और वो दादी की खोजबीन करना चाहें तो ये खत आपके लिए मुसीबत बन सकता था...। क्योंकि आप कितने भी एक्सपर्ट क्यूँ ना हो कुछ ना कुछ करके पुलिस पता कर लेती की खत किसने लिखा हैं.... और कहानी वहीं खत्म हो जाती...। 

ओहह.... ये सब तो मैने सोचा ही नहीं था...। 

डोंट वैरी अंकल अभी मैं आपके साथ हूँ तो टेंशन आने से पहले ही मैं सब संभाल लूंगी...। अच्छा अभी मैं चलतीं हूँ..। बाय...। 


थैक्यु बेटा... बाय...। 


वही कमरे में लगभग आधे घंटे तक बात करने के बाद सलोनी जैसे खत के बारे में भूल ही गई थीं... वो फोन रखकर नहाने चली गई...। फिर बाहर आकर अपना सामान सेट करने लगी...। तकरीबन एक घंटे बाद उसे अचानक से खत की याद आई...। लेकिन उसे यह याद नहीं था की खत उसने रखा कहाँ हैं..। उसने पूरा कमरा ऊपर नीचे कर दिया..। 

आवाज सुनकर उसके पैरेंट्स भी भीतर आए :- क्या हुआ बेटा... क्या ढुढ़ रहीं हो..! 


लेटर... दादी का लेटर... पता नहीं कहाँ रख दिया हैं...! 

व्हाट.... दादी का खत...। 

हाँ मम्मा... मैं बाहर से आई तो मेरे हाथ में था.... पर अब नहीं मिल रहा... पता नहीं मैने कहाँ रख दिया...। 

कोई बात नहीं बेटा... तुमने पढ़ तो लिया था ना...! 

नहीं मम्मी... वही तो... मैने पढ़ा ही नहीं था... मैं वो... आप प्लीज मदद करो ना मेरी.. (सलोनी सामान को यहाँ वहाँ फेंककर लगातार बोले जा रहीं थीं) 

हाँ हाँ... हम देखते हैं... यहीं कहीं रख दिया होगा तुने मिल जाएगा... टेंशन मत ले..। 

वो दोनों सब कुछ जानते हुवे भी अंजान बन रहे थे और खत को ढुंढने की कोशिश में सलोनी के साथ लग गए.. । 


विनी.... कहीं विनी के सामान में तो नहीं चला गया..। ऐसा सोचकर उसने विनी को फोन किया...। 

हैलो विनी... 

हाँ... बोल.... क्या हुआ...! 

यार तेरे सामान में दादी का लिखा लेटर आया हैं क्या...। 

नहीं तो... मैंने तो सारा सामान सेट कर लिया...। ऐसा तो कुछ भी नहीं था उसमें..। क्यूँ क्या हुआ....! 

यार.... पता नहीं मैने कहाँ रख दिया हैं... मिल ही नहीं रहा हैं..। यार तु भी मेरे साथ साथ कमरे में आई थीं ना.... तुझे कुछ याद हैं मैने कहाँ रखा था...। 

ठीक से तो याद नहीं पर तु बात करते हुवे सबसे पहले खिड़की की तरफ़ गई थीं... देख कहीं वहाँ तो नहीं रखा...। 

सलोनी दौड़ती हुई खिड़की पर गई.. लेकिन वहाँ कुछ नहीं था..। नहीं यार यहाँ तो कुछ नहीं हैं... । 

ओहहह.... मुझे ऐसा लग रहा हैं.... शायद वहीं कहीं रखा था तुने...। 

ठीक हैं चल... कोई नहीं... मैं देखती हूँ.... बाय..। 

सलोनी ने निराश होकर फोन रख दिया...। वो दिमाग पर जोर लगाकर सोचने लगी.... फिर उसने अचानक चीखते हुवे कहा... मैने यहीं रखा था पापा.... यहीं खिड़की पर..। 

लेकिन बेटा.... खिड़की तो खुली हुई हैं...अगर यहाँ रखा होता तो अब तक तो वो हवा में उड़कर कहीं भी चला गया होगा..। 


हाँ पापा...शायद ऐसा ही हुआ हैं.... वरना कमरे में रखा होता तो अब तक मिल गया होता...। मेरी लापरवाही की वजह से मैने दादी का लेटर खो दिया.... । 

सलोनी हताश और निराश होतीं हुई खिड़की पर जाकर खड़ी हो गई...। 

सुजाता और सुनील उसके पास गए और बोले :- जो हो गया उसे भूल जाओ बेटा...। यहाँ से नीचे गिरा भी होगा तो मिलने का कोई चांस ही नहीं हैं...। सड़क पर कहाँ कहाँ ढुंढने जाओगी...। कल फोन पर बात कर लेना दादी से.... अभी चलो खाना खा लो...। 


सलोनी मन मारते हुवे उनके साथ चल दी...। 

लेकिन उसका पूरा ध्यान सिर्फ खत पर ही था...। वो अपने आप में बहुत ज्यादा हताशा महसूस कर रहीं थीं..। 

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4 Comments

Radhika

14-Feb-2023 08:19 AM

Nice

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Bahut khoob 💐👍

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Seema Priyadarshini sahay

25-Sep-2022 03:45 PM

हर भाग में भरपूर रोचकता है मैम

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